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इन्द्र॑स्य॒ वज्रो॑ म॒रुता॒मनी॑कं मि॒त्रस्य॒ गर्भो॒ वरु॑णस्य॒ नाभिः॑। सेमां नो॑ ह॒व्यदा॑तिं जुषा॒णो देव॑ रथ॒ प्रति॑ ह॒व्या गृ॑भाय ॥२८॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

indrasya vajro marutām anīkam mitrasya garbho varuṇasya nābhiḥ | semāṁ no havyadātiṁ juṣāṇo deva ratha prati havyā gṛbhāya ||

पद पाठ

इन्द्र॑स्य। वज्रः॑। म॒रुता॑म्। अनी॑कम्। मि॒त्रस्य॑। गर्भः॑। वरु॑णस्य। नाभिः॑। सः। इ॒माम्। नः॒। ह॒व्यऽदा॑तिम्। जु॒षा॒णः। देव॑। र॒थ॒। प्रति॑। ह॒व्या। गृ॒भा॒य॒ ॥२८॥

ऋग्वेद » मण्डल:6» सूक्त:47» मन्त्र:28 | अष्टक:4» अध्याय:7» वर्ग:35» मन्त्र:3 | मण्डल:6» अनुवाक:4» मन्त्र:28


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर राजा को बिजुली से क्या सिद्ध करना चाहिये, इस विषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (देव, रथ) सुन्दर विद्वन् राजन् ! आप जो (मरुताम्) मनुष्यों की (अनीकम्) सेना के सदृश (इन्द्रस्य) बिजुली की (वज्रः) धमक वा शब्द (मित्रस्य) प्राण के (गर्भः) मध्य में स्थित और (वरुणस्य) श्रेष्ठ वायु का (नाभिः) बन्धन है (सः) वह (नः) हम लोगों की (इमाम्) इस (हव्यदातिम्) देने योग्य दान की क्रिया को (जुषाणः) सेवन करता हुआ (हव्या) ग्रहण करने योग्यों को देता है, उसको आप (प्रति, गृभाय) प्रतीति से ग्रहण करिये ॥२८॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। हे विद्वान् जनो ! बिजुली आदि पदार्थों और सम्पूर्ण मूर्त्त द्रव्यों के मध्य में वर्त्तमान कर्म्मों से युक्त सेना को करके विजय से शोभित हूजिये ॥२८॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुना राज्ञा विद्युता किं साधनीयमित्याह ॥

अन्वय:

हे देव रथ विद्वन् राजंस्त्वं यो मरुतामनीकमिवेन्द्रस्य वज्रो मित्रस्य गर्भो वरुणस्य नाभिरस्ति स न इमां हव्यदातिं जुषाणः सन् हव्या प्रति ददाति तं त्वं प्रति गृभाय ॥२८॥

पदार्थान्वयभाषाः - (इन्द्रस्य) विद्युतः (वज्रः) प्रहारः शब्दो वा (मरुताम्) मनुष्याणाम् (अनीकम्) सैन्यमिव (मित्रस्य) प्राणस्य (गर्भः) मध्यस्थः (वरुणस्य) श्रेष्ठस्य वायोः (नाभिः) बन्धनम् (सः) (इमाम्) (नः) अस्माकम् (हव्यदातिम्) दातव्यदानक्रियाम् (जुषाणः) सेवमानः (देव) विद्वन् (रथ) रमणीय (प्रति) प्रतीतौ (हव्या) आदातुमर्हाणि (गृभाय) गृहाण ॥२८॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। हे विद्वांसो ! विद्युदादिपदार्थैः सर्वमूर्त्तद्रव्यान्तःस्थैः कर्मभिर्युक्तां सेनां सम्पाद्य विजयेनालङ्कृता भवन्तु ॥२८॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. हे विद्वानांनो ! विद्युत इत्यादी पदार्थात व सर्व मूर्त द्रव्यात कर्म करणारी सेना तयार करून विजयाने सुशोभित व्हा. ॥ २८ ॥